इसरो कल भेजेगा एक और सेटेलाइट

मिथिलांचल न्यूज़ :-इसरो अपनी कामयाबियों की फेहरिस्त में जल्द ही एक नई सफलता को जोड़ने जा रही है। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन 29 मार्च को जीसैट-6ए उपग्रह का प्रक्षेपण करेगा। यह एक उच्च शक्ति का एस-बैंड संचार सैटेलाइट है। इसरो के मुताबिक इस उपग्रह को भारत के आधुनिक जियोसिनक्रोनस उपग्रह प्रक्षेपण यान यानी जीएसएलवी रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में पहुंचाया जाएगा। जीएसएलवी-एफ08 रॉकेट उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में सटीक जगह पर स्थापित करेगा।

इस उपग्रह का जीवनकाल 10 साल का होगा। इसे 29 मार्च की शाम 4 बजकर 56 मिनट पर श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाएगा। जीसैट-6ए इससे पहले लांच हुए जीसैट-6 के जैसा ही उपग्रह है। इसे विकसित की गई आधुनिक तकनीक से लैस किया गया है। इसमें 6एम एस-बैंड अनफ्लेरेबल एटीना, हैंडहेल्ड ग्राउंड टर्मिनल व नेटवर्क प्रबंधन जैसी कई तरह की तकनीक शामिल है। यह उपग्रह मोबाइल संचार के क्षेत्र में अहम भूमिका निभाएगा।
इसरो के चेयरमैन के. सिवन ने कहा कि जीसैट-6ए के बाद एक नेविगेशन उपग्रह का प्रक्षेपण किया जाएगा, जो अगले वित्तवर्ष में लांच होगा।

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क्या है जीएसएलवी

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (अंग्रेज़ी:जियोस्टेशनरी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान है। ये यान उपग्रह को पृथ्वी की भूस्थिर कक्षा में स्थापित करने में मदद करता है। जीएसएलवी ऐसा बहुचरण रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36000 कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है जो विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा की सीध में होता है। ये रॉकेट अपना कार्य तीन चरण में पूरा करते हैं। इनके तीसरे यानी अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है। रॉकेट की यह आवश्यकता केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकते हैं। इसलिए बिना क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट का निर्माण मुश्किल होता है। अधिकतर काम के उपग्रह दो टन से अधिक के ही होते हैं। इसलिए विश्व भर में छोड़े जाने वाले 50 प्रतिशत उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं। जीएसएलवी रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर निश्चित कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है। यही इसकी की प्रमुख विशेषता है।

आशीष श्रीवास्तव की रिपोर्ट….

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