सजा के हकदार या सहानुभूति के !!! “प्रज्ञा संस्कृति निर्माण संघ”….

संघ : व्यक्तियों के समूह से बनता है ‘संघ’, पर सवाल उठता है समाज के कैसे व्यक्तियों के समूह से ?

जाहिर सी बात है वैसे व्यक्ति जिन्हें कोई स्वार्थ न हो जिनमें सेवा भाव हो वैसे लोग ही तो निशुल्क समाज की सेवा को आगे आते है, यह कहानी “प्रज्ञा संस्कृति निर्माण संघ” की है….

२०१५ में ही मैं संघ में जुड़ गया था, मैं प्रभावित था संघ के प्रमुख श्री अरुण श्रीवास्तव जी से जिन्हें हम सभी आदर से गुरुजी कहते है, लोग जुड़ते गए कारवां आगे बढ़ता गया पर एक व्यक्ति जिसने संघ को सब से ज्यादा प्रभावित किया वो था एक जोशिला युवा शशि रंजन, गायत्री परिवार और पटना के प्रज्ञा युवा प्रकोष्ठ से जुड़े होने के कारण वो संस्कार शाला पहले से ही चला रहा था,

गुरुजी से जुड़ने पर हमलोगों ने समाज सुधार के लिए साथ काम करना शुरू किया….

जिसमें बच्चों को निशुल्क पढ़ाने के काम के आगे उनके शारीरिक शिक्षा, बालिकाओं हेतु आत्मरक्षा आदि कार्यक्रम के साथ मासिक रूप से मोहल्ले की सफाई,

गंगा सफाई, पर्यावरण व वातावरण शुद्धिकरण के लिए पौराणिक तरीके से हवन का संचालन होने लगा, गुरुजी के साथ संघ के सदस्यों की हरिद्वार यात्रा यादगार बन गयी,

सब ठीक ठाक चल रहा था, जहाँ मैं पत्रकारिता का विद्यार्थी था इसलिए निरंतर प्रगतिशील विचारों से लैश रहता था और कुछ न कुछ विकास करने की ही सोचता था सभी अभियानों के वीडियो मैं बनाता,प्रेस में भेजता और संघ के कार्यक्रम पर आर्टिकल लिखता था, उधर शशि रंजन मृदु स्वभाव के थे जिससे बच्चों की विशेष कृपा उन्हें प्राप्त थी समूह के संचालन का उन्हें ज्ञान था, जैसे जैसे समर कैम्प में बच्चे आये उनमे से कुछ बच्चे संघ से जुड़ते गए और स्थायी हो गए इसका श्रेय शशि रंजन को ही जाता था क्योंकि उन्होंने उन गरीब बच्चों को कम शुल्क पर पढ़ाना शुरू कर दिया था,

कुछ बच्चों को पटना ताईंक्वोंडो एसोसिएशन के सेक्रेटरी श्री जे. पी मेहता जी की तरफ से प्रोत्साहित करने हेतु निशुल्क ताईक्वांडो ड्रेस भी मिले इसका श्रेय सर जे. पी. मेहता को जाता है।

सब ठीक ही चल रहा था हमारा संघ निरंतर विकास कर रहा था,

१५ अगस्त के प्रोग्राम में लोगो की भीड़ थम नही पा रही थी, मालसलामी के थानाध्यक्ष, ७० एवं ७१ के वार्ड पार्षद, बिहार राज्य के क्रीड़ा प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष सरीखे लोग भी हमारे कार्यक्रम में शामिल होने लगे थे..

आज भी संघ की बुनियादें वैसी ही सुदृढ़ है जैसे पहले थीं,,, गुरुजी के द्वारा आज भी निरतंर योग व मासिक हवन का कार्यक्रम चलाया जा रहा है..’संघ’ लोगों के समूह से बनता है.. किसी भी व्यक्ति से संघ की पहचान नही होती, बल्की संघ से ही उक्त व्यक्ति पहचाने जाते है…जैसे मृत्युलोक में जीवों का आवागमन लगा रहता है..

उसी प्रकार लोग तो यहाँ कदाचित आते जाते ही रहते है… कारवां निरंतर आगे बढ़ता ही रहता है।

हालांकि अब शशि रंजन ने पद से इस्तीफा दे दिया.. कारण जो भी हों…

पर सवाल ये उठता है की आखिर इससे उन्होंने समाज मे क्या संदेश दिया है?

संघ में जो बच्चे है सातवीं, आठवीं कक्षा के वे आजकल फेसबुक पर गर्ल फ्रेंड ढूंढते दिख जाते है,

सही बात है जी..

प्रेम करना भी कभी गलत बात हो सकती है भला..

संघ से तो शशि रंजन अब कोई सरोकार नही रखते पर सुबह होने वाले योग में कभी कभी पहुँच जाते है, हाँ अपने घर पर ही बच्चों की पढ़ाई, कबड्डी औऱ संस्कार शाला अभी तक चला रहे हैं। बस मोहल्ले की सफाई और गंगा सफाई बंद हो गयी है। यहाँ ग़ौर करने योग्य ये बात है की समाज की गंदगी तभी साफ करें जब आप खुद गंदे होने को तैयार हों, जिस काम का वीरां उठाये उसको संकल्पित हो कर करे… और मक़ाम तक पहुचाएं, समाज की गंदगी साफ करते करते अक्सर लोगों के तन और मन गंदे हो ही जाते है..उससे उबर कर निरंतर कार्य करने वाले ही अपने मंजिल को पाते है… जोश में किसी काम को शुरू करना और बीच मे ऊब कर उक्त कार्य को छोड़ देना युवाओं का स्वभाव बनता जा रहा है.. यह एक विचारणीय तथ्य है! और २१वी सदी के टेक-फ्रेंडली जेनरेशन के लिए ये श्राप बड़ाबर है..की उनमे स्थिरता अटलता का लोप होता जा रहा है…आने वाले समय मे इसके परिणाम भयभीत करने वाले होंगे!