​तीन तलाक़ में कितने पेंच? बात सुनने में पेचीदा लगती है..पर पेचीदा है नहीं..आइए जानते है..

चारों ओर शोर मचा है कि ये रीत बदल डालो , तीन तलाक़ औरतों का जानी दुश्मन है , अब यह रीत नहीं चलेगी !

एैसा बोलने वाले तो बहुत हैं पर इनमें से कितने लोग हैं जिन्होंने क़ुरआन को मानी के साथ पढ़ा है ? क्या तलाक़ के लॉ पर ग़ौर किया है ?




क़ुरआन असल में एक एैसी किताब है जिसमें साइंस ,भूगोल ,अर्थ-शास्त्र ,इतिहास और बहुत सारी जानकारी के साथ रिश्तों और मानवीय मूल्यों का कानून भी है जिसे मुस्लिम लॉ बोर्ड भी स्वीकार करता है !

तीन तलाक़ के बारे में यहाँ कुछ बातों का साफ़ हो जाना बहुत ही ज़रूरी है !

क़ुरआन कहता है कि जब कोई जोड़ा समाज के सामने एक दुसरे को क़ुबूल कर ले तो वे दोनों एक दुसरे की निकाह में चले जाते हैं और समाज उन्हें मियाँ-बीवी कहता है !

किसी कारण से अगर इन दोनों की आपस में ना बने तो सबसे पहले इन दोनों को ख़ूब अच्छी तरह से समझाअो , जिंदगी के तीखे उसूलों से अवगत कराओ, अगर तब भी ये दोनों अलग होने की बात पर अड़े रहें तो मियाँ-बीवी तलाक़ या ख़ुला ले सकते हैं ,यहाँ ये बताना आवश्यक है कि जिस तरह मियाँ तलाक़ ले सकता है उसी तरह बीवी अपनी मर्ज़ी से ख़ुला लेकर अलग हो सकती है !

पति अगर तलाक़ लेना चाहता है तो बीवी के सामने  एक बार कहे , दूसरी तलाक़ एक इद्दत के बाद ही कह सकता है , एक इद्दत ४० दिन की होती है ! इद्दत के बीच में अपने घर में ही रखे , सारी चीज़ें मुहैया कराए और बीवी पुरी कोशिश करे कि मियाँ इस बीच उससे रूजु कर ले , हो सकता है मियाँ इरादा बदल ले और अगली तलाक़ ना दे !

अगली तलाक़ ४० दिन की इद्दत के बाद ही दे सकते हैं ! इस तरह ४ महीने में ३ तलाक़ पुरा हो सकता है , बशर्ते कि मियाँ रूजु ना करे !

इस बीच बीवी को घर से नहीं निकाल सकते और ना ही मारें पीटें , इस्लाम में औरत पर हाथ उठाने , मार-पीट करने की सख़्त मनाही है !

पेट में बच्चा हो तो उस समय की तलाक़ नहीं मानी जाएगी !

दूर से तलाक़ देना, लिख कर भेज देना ना जायज़ है  क्योंकि मियाँ-बीवी का आमने-सामने होना और इद्दत साथ में गुज़ारना लाज़मी है ज़रूरी है !

जब तक वह छोड़ी गई औरत किसी दुसरे की निक़ाह में नहीं चली जाती छोड़ने वाला पति उसका पुरा ख़र्च उठाएगा !

क्या क़ुरआन को किसी ने मानी के साथ पढ़ा है ? कितने लोग क़ुरआन के इस लॉ के बारे में जानते हैं ?

अगर लोग जानते होते तो आज जो तीन तलाक़ राष्ट्रीय मुद्दा बन कर घूम रहा है ये ना होता !

इन बातों को लोगों तक पहुंचाने का काम इस लॉ के जानकार ज़िम्मेदार लोगों का था ! जैसे ही पहला मामला सामने आया था उस पर बोर्ड को सख़्ती बरतते हुए अॉबजेक्शन करना चाहिए था , पर एैसा नहीं होने के कारण सैंकड़ों लोगों को मानसिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा और मज़हब में औरतों की इतनी हिफ़ाज़त होने के बाद भी चंद लोगों की नज़र अंदाज़ी ने क़ुरआन के इतने सुलझे हुए लॉ को भी आज कटघरे में खड़ा कर दिया है !

रेशमा ख़ातून

की 

रिपोर्ट.