बिहार से दान में मिला था भारत सरकार को पहला लग्जरी प्लेन

PATNA : तिरहुत का विमानन इतिहास दरअसल बिहार का विमानन इतिहास है। कुछ अर्थों में यह भारत का विमानन इतिहास है।

भारत में कांग्रो सेवा प्रदान करने की बात हो या फिर देश का पहला लग्‍जरी विमान का इतिहास हो, यहां तक की आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के सरकारी विमान की बात हो, तिरहुत, दरभंगा और उसके विमान के योगदान का उल्‍लेख के बिना इनका इतिहास लिखना संभव नहीं है।

वरिष्ठ पत्रकार कुमुद सिंह के अनुसार तिरहुत के विमानन इतिहास की शुरुआत तिरहुत सरकार महाराजा रामेश्‍वर सिंह के कालखंड में ही होती है। तिरहुत सरकार का पहला विमान एफ-4440 था। जो 1917 में प्रथम विश्‍वयुद्ध के दौरान भारतीय मूल के सैनिकों के लिए खरीदा गया था। यह एक संयोग ही है कि तिरहुत सरकार का पहला विमान जहां भारतीय फौजी के लिए खरीदा गया था, वही दरभंगा एविएशन का आखिरी विमान भी भारतीय वायुसेना को ही उपहार स्‍वरूप दिया गया। तिरहुत सरकार के एक इंजनवाले एफ-4440 विमान में दो लोगों के बैठने की सुविधा थी।

1931 में वासराय के दरभंगा आगमन से पहले तिरहुत सरकार द्वारा एक विमान खरीदने की बात कही जाती है। यह जहाज भी बेहद छोटा था। एक इंजनवाले इस जहाज की कोई तसवीर अब तक उपलब्‍ध नहीं हुई है, क्‍योंकि ये समय पर दरभंगा नहीं आ सका। 1932 में गोलमेज सम्‍मेलन में भाग लेने के लिए जब कामेश्‍वर सिंह लंदन गये तो उस जहाज को भारत लाने की बात हुई, लेकिन नहीं आ पाया। 1934 के भूकंप के बाद इसे अशुभ मान कर लंदन में ही बेच दिया गया। तिरहुत में पहला विमान 1933 में उतरा।




पूर्णिया के लालबालू मैदान में माउंट एपरेस्‍ट की चोटी की ऊंचाई नापने और सुगम रास्‍ता तलाशने के लिए तिरहुत सरकार ने इस मिशन को प्रायोजित किया था। इसमें हरिहरपुर के जमींदार, मुरहो के जमींदार रास बिहारी लाल यादव और बनैली के जमींदार राजा के सिंह की अहम भूमिका रही। वैसे हरिहरपुर के जमींदार चन्‍नू प्रसााद सिंह को तिरहुत का पहला विमान मालिक कहा जा सकता है। इसी परिवार ने अपना निजी विमान 1936 के आसपास खरीदा था। वह कुछ मायनों में हेलिकॉप्‍टर जैसा था।

उलाव स्‍टेट (बेगूसराय) के जमींदार बाबू चंद्रचूड देव के पिता जिन्‍हें राजा जी कहा जाता था, ने न केवल जहाज खरीदा, बल्कि उलाव में एक छोटा सा रनवे भी बनाया। 1938 में तिरहुत सरकार ने अपना दूसरा विमान खरीदा। तीन सीटोंवाले इस विमान का पंजीयन संख्‍या अब तक ज्ञात नहीं हो पाया है। 1940 में एक आठ सीटोंवाला विमान खरीदा गया। इस विमान का पंजीयन VT-AMB के रूप में किया गया। बाद में यह पंजीयन संख्‍या एक गुजराती कंपनी को और 18 मार्च 2009 में कोलकाता की कंपनी ट्रेनस भारत एविएशन,कोलकाता-17 को VT-AMB (tecnam P-92J5) आवंटित कर दिया गया है।

दो इंजनवाले इस विमान को 1941 में आयोजित कार्यक्रमों की तसवीरों व विडियो में देखा जा सकता है। यह विमान 1950 तक तिरहुत सरकार का सरकारी विमान था। 1940 से 1950 के दौरान दो और विमान खरीदे गये। इसी दौरान तिरहुत सरकार ने तीन बडे एयरपोर्ट दरभंगा, पूरनिया और कूजबिहार का निर्माण कराया। जबकि मधुबनी समेत कई छोटे रनवे भी विकसित किये। अपने तीन विमान में से एक तीन सीटर विमान कामेश्‍वर सिंह ने अपने मैनेजर डेनबी को दरभंगा से जाते वक्‍त उपहार स्‍वरूप भेंट कर दिया। इधर, दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद 1950 में अमेरिका ने भारी पैमाने पर वायुसेना के विमानों की निलामी की।

दरभंगा ने इस निलामी में भाग लिया और चार डीसी-3 डकोटा विमान खरीदा। इनमें दो C-47A-DL और दो C-47A-DK मॉडल के विमान थे। आजाद भारत में यह एक साथ खरीदा गया सबसे बडा निजी विमानन बेडा था। भारत सरकार में इन चारों विमानों को क्रमश: VT-DEM,VT-AYG, VT-AXZ VT-CME के नाम से पंजीयन कराया गया था। अपने दो पहले के और चार नये कुल छह जहाजों को लेकर दरभंगा के पूर्व महाराजा कामेश्‍वर सिंह ने दरभंगा एविएशन नाम से अपनी 14वीं कंपनी की स्‍थापना की।

इस कंपनी का मुख्‍यालय काेलकाता रखा गया। इसके निदेेशक बनाये गये द्वारिका नाथ झा। दरभंगा एविएशन मुख्‍य रूप से कोलकाता और ढाका के बीच काग्रो सेवा प्रदान करती थी। लेकिन कोलकाता और दरभंगा के बीच सप्‍ताहिक यात्री सेवा और कोलकाता ढाका के बीच नियमित यात्री सेवा भी प्रदान करती थी। VT-DEM,VT-AYG, VT-AXZ नंबर का विमान जहां आम लोगों के लिए उपलब्‍ध था, वहीं,VT-CME को कामेश्‍वर सिंह ने खास अपने लिए विशेष तौर पर तैयार करबाया था।

यह भारत का पहला लग्‍जरी विमान था, इसमें कई खूबियां थी। यह विमान कर्नाटक के बलगाम में अभी संरक्षित कर के रखा हुआ है। इसके बारे में बात करने से पहले हम उन तीन विमानों का इतिहास बताना चाहेंगेे। 1950 में स्‍थापित दरभंगा एविएशन को पहला धक्‍का 1954 में लगा। 01 मार्च 1954 को कंपनी का विमान VT-DEM कलकत्‍ता एयरपोर्ट से उडने के तत्‍काल बाद गिर गया। इस हादसे के बाद कंपनी कमजोर हो गयी। कंपनी को बेहतर करने के लिए यदुदत्‍त कमेटी का गठन किया गया, लेकिन कमेटी का प्रस्‍ताव देखकर कामेश्‍वर सिंह निराश हो गये। इसमें कई प्रस्‍ताव हास्‍यास्‍पद और अव्‍यावहारिक थे।

कामेश्‍वर सिंह ने कंपनी को नये सिरे से शुरु करने का फैसला किया और नये विमान खरीदने का फैसला लिया गया। कंपनी ने 1955 में अपना एक पुराना विमान VT-AXZ कलिंगा एयरलाइंस को लीज पर दे दिया। कलिंगा एयरलाइंस ने उस विमान के परिचालय में घोर लापरवाही की, जिसका नतीजा रहा कि उसी साल 30 अगस्‍त 1955 को वो विमान नेपाल के सिमरा में दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया। दरभंगा एविएशन का तीसरा विमान 1962 में दुर्घटना का शिकार हो गया। VT-AYG नंबर का यह विमान बांग्‍लादेश में दुर्घटना का शिकार हो गया। इस विमान के दुर्घटनाग्रस्‍त होने के बाद दरभंगा एविएशन की काग्रो सेवा नये विमान की आपूर्ति तक बंद कर दी गयी, जो फिर कभी शुरू न हो सकी।

कंपनी के पास दो विमान बचा था, जिन में से एक कामेश्‍वर सिंह का निजी विमान था। VT-CME नंबर का यह विमान कामेश्‍वर सिंह के निधन तक उनके साथ रहा। इसी विमान ने तिरहुत को पहला पायलट दिया। बेशक इस विमान के पायलट आइएन बुदरी थे, लेकिन 1960 में मधुबनी के लोहा गांव के सुरेंद्र चौधरी इस जहाज के सहायक पायलट के रूप में नियुक्‍त होनेवाले तिरहुत के पहले पायलट बने। दरभंगा एविएशन में कुल तीन ऐसे पायलट थे जो दरभंगा के मूल निवासी थे। श्री चौधरी 1963 तक VT-CME विमान के सहायक पायलट थे। 01 अक्‍टूबर 1962 को कामेश्‍वर सिंह की मौत के बाद भारत सरकार ने इस विमान का निबंधन रद्द कर लिया।

चीन युद्ध के बाद दरभंगा की संपत्ति देखनेवाले न्‍यासी ने दरभंगा, पूर्णिया और कूचबिहार एयरपोर्ट के साथ-साथ इस लग्‍जरी विमान को भी भारत सरकार को सौंप दिया, इसके बदले दरभंगा को क्‍या मिला इसकी जानकारी अभी शेष है, लेकिन ये तीनो एयरपोर्ट जहां आज भारतीय वायुसेना के एयरबेस बन चुके हैं और वहीं इस विमान VT-CME C‑47A‑DL 20276 LGB ex 43‑15810 को भारतीय वायुसेना के लिए नया नंबर BJ1045 दे दिया गया। यह विमान वर्षों तक भारत के प्रधानमंत्री का आधिकारिक विमान बना रहा। जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्‍त्री यहां तक मोरारजी भाई देसाई तक इस विमान का उपयोग प्रधानमंत्री के रूप में कर चुके हैं।

सेवा के उपरांत इस जहाज को भारतीय वायुसेना ने धरोहर घोषित कर कर्नाटक के बलगाम स्थिति सैनिक प्रशिक्षण पैरेड मैदान में संरक्षित कर रखा है। दुख इस बात को लेकर है कि वहां इसका इतिहास नहीं लिखा गया है। इसकी पहचान छुपा ली गयी है। इसके पीछे क्‍या कारण है उसकी जानकारी अभी नहीं है। लेकिन इसके संरक्षण से जहां सकून मिलता है, वही यह देखकर जरूर दुख हुआ कि जिस जहाज को रखने के लिए आज भी दरभंगा एयरपोर्ट पर विशाल हेंगर बना हुआ है, उसे खुले आकाश के नीचे अनाम और गुमनाम अवस्‍था में पाया जाता है। कर्नाटक के लोगों को उसका इतिहास नहीं पता, तो तिरहुत के लोगों को उसके वर्तमान की कोई जानकारी नहीं। भारत के प्रधनमंत्री का पहला आधिकारिक विमान की पहचान महज इतनी है कि यह विमान एक विशेष विमान है।
 

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