सुप्रीम कोर्ट ने मांग मान ली तो पार्टी अध्यक्ष भी नहीं रहेंगे लालू प्रसाद

अगर सुप्रीम कोर्ट ने दागी नेताओं के पार्टी अध्यक्ष और पार्टी पदाधिकारी बनने पर रोक की मांग स्वीकार कर ली तो सजायाफ्ता होने के कारण चुनाव लड़ने के अयोग्य हो चुके बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के हाथ से पार्टी अध्यक्ष का पद भी चला जाएगा। ऐसा हुआ तो अयोग्यता के बावजूद राजनीति में सक्रिय लालू प्रसाद यादव का वास्तव में राजनैतिक सन्यास होना तय है।

दागियों और सजायाफ्ताओं के पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर रोक के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में दो जनहित याचिकाएं लंबित हैं। एक में सजायाफ्ता के पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर रोक लगाने की मांग की गई है। और दूसरी में पांच साल की सजा के अपराध में अदालत से आरोप तय होने के बाद व्यक्ति को पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर रोक मांगी गई है। पहले मामले में कोर्ट ने गत 1 दिसंबर को नोटिस जारी कर केन्द्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था। इस पर अब 12 फरवरी को फिर सुनवाई होनी है। दूसरा मामला मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष विचाराधीन है।




लालू के राजनैतिक भविष्य को संकट में डालने वाली ये दोनों ही याचिकाएं वकील और भाजपा नेता अश्वनी कुमार उपाध्याय की हैं। दोनों ही मामले लालू प्रसाद के खिलाफ जाते हैं। उन्हें तीन मामलों में सजा हो चुकी है और दो मामलों में आरोप तय होने के बाद ट्रायल चल रहा है। हालांकि लालू प्रसाद अकेले ऐसे नेता नहीं है जो इस फेर में फंसते हों। भ्रष्टाचार के जुर्म में सजायाफ्ता ओमप्रकाश चौटाला भी इसमें फंसेंगे। चौटाला टीचर भर्ती घोटाले में सजा काट रहे हैं और दोषी होने के कारण चुनाव लड़ने के अयोग्य हैं। फिर भी वह पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो)के अध्यक्ष भी हैं।

चारा घोटाला के तीसरे मामले में पांच साल की सजा होने से लालू प्रसाद का चुनाव मैदान में उतर कर सक्रिय राजनीति करने का ख्वाब और दूर की कौड़ी हो गया है। उनका राजनैतिक वनवास लंबा हो गया है। तीन मामलों में उन्हें पांच साल, साढे तीन साल और बुधवार को फिर पांच साल की सजा हुई है। जनप्रतिनिधि कानून कहता है कि कोई भी व्यक्ति सजा काटने के छह साल बाद तक अयोग्य रहेगा। लालू को पहले मामले में 3 अक्टूबर 2013 को पांच साल की सजा हुई थी। उस मामले में लालू दो महीने जेल में रहे उसके बाद सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई। ट्रायल के दौरान भी 10 महीने जेल में रहे थे। इस तरह पहले मामले में वे एक साल की सजा काट चुके हैं। लेकिन याद रहे कि जेल से बाहर आने के बाद सजा रुक गई है।

 

अगर कोर्ट उन्हें अंत में बरी नहीं करता और सुप्रीम कोर्ट तक से सजा पर मुहर लग जाती है तो लालू को बाकी 4 साल कैद भुगतनी होगी। उसके छह साल बाद वे चुनाव लड़ने के योग्य होंगे। अगर इसी तरह अन्य मामलों में भी अयोग्यता की अवधि जोड़ी जाए तो लालू के सक्रिय राजनीति में लौटने के अरमानों पर पानी फिरता नजर आता है। तीनों मामलों में सजा की अवधि सजा की तारीख और जेल जाने की तिथि से गिनी जाएगी।

Source:jagran
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