सुशिक्षा अभी भी सफर में बच्चों का भविष्य अधर में!

करीब 12 बजे होंगे मैं किसी काम से घर से निकला था और अपनी बाइक राजकीय माध्यमिक विद्यालय के गेट के सामने लगा रखी थी, शायद स्कूल में अभी लंच हुआ था कुछ बच्चे बाहर निकल रहे थे उनमे बच्चों की एक टुकड़ी ने मेरा ध्यान खींचा वो बच्चे जिनमे 8 से लेकर 13 साल तक के लड़के मौजूद थे वे सिगरेट सुलगा रहे थे, मेरा माथा ठनका मैं अपने स्कूली दिन याद करने लगा हालांकि मैंने कोई बहुत पहले हाई स्कूल नही पास की थी बस 2017 में ही तो ग्रेजुएशन हुई है मेरी पर इन बच्चों और मुझमे इतना फर्क कैसे आ गया,जिस उम्र में बच्चों के हाथों में चॉकलेट, बिस्कुट, आदि होने चहिये उनके हाथों में सिगरेट देख कर अपार वेदना होने लगी, अगर मेरी शिक्षा पत्रकारिता विषय से न हुई होती तो मैं तुरंत उनका प्रतिरोध करता। हालांकि कुछ सोच कर मैं बाइक से उतर उनके थोड़ा करीब बैठ गया पर उनकी गंदी बाते और अभद्र अश्लील गालियो सेे मेरी वेदना और बढ़ गई। मैं सोचने लगा आखिर इनकी इस तरह की वेशभूषा जिसे ये स्वेग बतलाते है और प्रदुषित मानसिकता का क्या कारण हो सकता है, क्या इसमे इनके समाज का दोष है, माँ बाप का दोष है! या उन शिक्षकों का जो स्कूल के अंदर है, पर आखिर मैं भी बड़ा हुआ हूं उसी तरह के समाज में, उस समय भी वही शिक्षक थे स्कुलों में, हां कुछ रिटायर हो गए है पर अभी 2006 की ही तो बात है जब मैं छठवीं कक्षा में था क्या इतने दिन बदल गए की जो चीज़े कॉलेज में पढ़ने वाले युवा भी छुप छुपा कर करते थे वो मध्यविद्यालय के छोटे छोटे बच्चे खुलेआम करते है। क्या हमारा समाज मर गया है या इन बच्चों ने ये अश्लीलता हमसे ही सीखी है! उक्त बातें हर माँ बाप समाज के तमाम वर्गो के लोग, शासन एवं प्रशासन के ऊपर एक प्रश्नचिन्ह लगा रहा है, विडंबना ये है की इससे न किसी सरकारी कर्मी को मतलब है ना ही उन बच्चों के माँ बाप को जो बच्चे इतनी कम उम्र में विषैली मानसिकता का शिकार हुए जा रहे है क्या ये बच्चें आगे चल कर अपराधी नही बन जाएंगे!

उधव कृष्ण