नीतीश राजगीर में, लालू के घर CBI की दबिश, पूरे मामले पर JDU की चुप्पी का क्या मतलब?

शुक्रवार को लालू यादव के तमाम ठिकानों पर छापों की खबर आयी तो ये सवाल वाजिब था कि क्या अब नीतीश और लालू के बीच हिचकोले लेकर चल रहा गठबंधन खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है. सवाल इसलिए भी उठना स्वभाविक था क्योंकि सीबीआई की एफआईआर के लपेटे में तेजस्वी यादव भी आए हैं, जो नीतीश की सरकार में मंत्री हैं.

क्या सुशासन बाबू की इमेज पर फक्र करने वाले नीतीश तेजस्वी को मंत्री मंडल से बाहर निकालेंगे. इस सवाल का जवाब हर कोई जानना चाह रहा था लेकिन इस सवाल का जवाब जिनके पास था वो न तो किसी से बात कर रहे थे और न ही मीडिया के सवालों का जवाब देने के लिए उपल्ब्ध थे.

ये बात इत्तेफाक हो सकती है कि शुक्रवार की सुबह जब लालू यादव के ठिकानों पर छापा पड़ा तो नीतीश कुमार पटना में नहीं बल्कि राजगीर में थे. वो दरअसल गुरुवार को ही राजगीर चले गए थे. अधिकारिक तौर पर ये कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार की तबीयत ठीक नहीं थी और वो आराम करने के लिए राजगीर गए हैं. लेकिन अटकलों का बाजार गर्म है. कुछ लोगों का कहना है कि नीतीश कुमार को पहले से ही लालू के ठिकानों पर छापे के बारे में बता दिया गया था. ताकि उन्हें विश्वास में भी लिया जा सके और छापों के बाद अगर कानून व्यवस्था बिगड़ती है तो उसके लिए राज्य सरकार तैयार रहे.

कुछ लोगों का ये भी कहना है कि विपक्ष की तरफ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मीरा कुमार से आमना सामना नहीं हो इसलिए नीतीश ने पटना छोड़ दिया था. मीरा कुमार गुरुवार को पटना में विधायकों से मिलकर समर्थन मांगने गई थीं. सूत्रों के मुताबिक मीरा कुमार नीतीश से भी मुलाकात करना चाहती थीं. नीतीश पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि उनकी पार्टी एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देंगे.

जेडीयू लालू के खिलाफ चुप्पी को भी अपना हथियार बना रही है. ये बात दिल्ली में भी साफ दिखी. शरद यादव और हर बात में पार्टी का पक्ष मीडिया में रखने वाले केसी त्यागी दोनों दिल्ली में ही थे. लेकिन पत्रकारों की तमाम कोशिशों के बावजूद ये नेता लालू के सवाल पर मुंह खोलने को तैयार नहीं थे. बहुत कुरदने पर ये बात भी पता चली कि इन्हें पार्टी हाई कमान की तरफ से इस मामले पर चुप रहने को कहा गया है. यानी मुसीबत में घिरे लालू को जेडीयू ने अकेले छोड़ दिया है.

सूत्रों के मुताबिक, जेडीयू इस लिए चुप है कि बोलने का मतलब होगा या तो लालू यादव का पक्ष लेना या फिर इसके लिए बीजेपी और केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा कर यह आरोप लगाना कि केंद्र सरकार सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है. जेडीयू न तो इस वक्त लालू के घोटालों के दलदल में खुद को फंसाना चाहती है और न ही लालू के लिए बीजेपी से संबंध खराब करना चाहती है. नीतीश कुमार इस मौके को लालू और उनके बेटों पर दबाव बनाने के लिए बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं. नीतीश को लगाता है कि गठबंधन की सरकार में अपनी स्थिति मजबूत करने का ये शानदार मौका है. इसके लिए जरूरी है कि लालू और सीबीआई के बीच में बिल्कुल नहीं पड़ना.

कहा जा रहा है कि छापे और मुकदमें के बाद भी नीतीश लालू के बेटों के मंत्रीमंडल से निकालने में जल्दबाजी नहीं करेंगे. वे राजगीर में बैठकर हवा का रूख देख रहे हैं. कुछ लोगों का कहना है कि लालू और उनके बेटे अगर घोटाले में और बुरी तरह फंसते हैं तो आरजेडी और कांग्रेस दोनों में फूट हो सकती है. पटना में ये बात खूब चर्चा में है कि मीरा कुमार से मिलने के लिए कांग्रेस और आरजेडी के विधायकों की जो बैठक गुरुवार को बुलाई गई थी उसमें कांग्रेस के सात और आरजेडी के दो दर्जन विधायक नदारद थे.

दिल्ली में 23 जुलाई को जेडीयू के राष्ट्रीय़ कार्यकारिणी की बैठक होने जा रही है. माना जा है कि तब तक चीजें काफी कुछ साफ हो जाएंगी. राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को गच्चा देने के बाद लोगों की नजरें उपराष्ट्रपति चुनाव पर लगी हुईं हैं कि इसमें नीतीश क्या गुल खिलाते हैं.

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